पाथेय
दिन-भर के कार्यों के बोझ में दबा
आधुनिकता की अंधी-दौड़ से हारा
मल्टी-मीडिया की
चकाचौंध से घबराया
रोजी-रोटी की
भागम-भाग से परेशान
सुख-सुविधा का लालायित
पथिक .....
जब घर लौटता है तो
पाथेय बना सूर्यास्त का सुरज
उसकी सारी थकान को
चूर-चूर कर देता है
आसमान पर छाई लालिमा
मानो पथिक की रगों में
खून का संचार कर रही हो
पक्षीओ का कलरव मानो
मन को सुकून दे रहा हो
दूर क्षितिज पर
धरती-अंबर का स्नेह मिलन
मानो उसके लिए कोई उत्सव हो
प्रकृति का यह सुन्दर चित्रण
पथिक का पाथेय बना हो।
पथिक-शंकर नाथ,धीरदेसर
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