मोबाइल महाविनाश
मोबाइल के दुष्परिणाम पर कविता मोबाइल आया जीवन में, लाया संग सुविधा, पर इसका दुरुपयोग बने, अब एक बड़ी विपदा। हर पल बस स्क्रीन पे, नजरें गड़ी रहें, सामने जो हैं पास में, उनसे दूरियाँ बढ़ें। बचपन खो रहा है अब, गेम्स की दुनिया में, कहाँ गए वो खेल खुले, मैदानों की छाया में। माँ-बाप की गोदी छूटी, किताबें भी रूठीं, मोबाइल की जादूगरी ने, नींव तक को लूटी। संध्या की बातों को, अब चैट ने खा लिया, आंखों की रोशनी को, नीली रौशनी ने छीन लिया। रिश्ते हो गए डिजिटल, अपनापन अब कहाँ? दिलों की गर्माहट में, आ गया है अब धुआँ। सोते-जागते मोबाइल, खाने में भी साथ, इंसान अब मशीन बना, छूट गई सौगात। बचो इससे जितना हो, साधन है ये बस, वरना जीवन हो जाएगा, खाली और निष्कलुष।