संदेश

जीवन क्या है और कैसे जिए

 जीवन बह रहा है।  हर कण हर क्षण बह रहा है,  हर कण अपना स्वरूप भी परिवर्तित कर रहा है। सब कुछ गतिमान है।  कुछ भी स्थिर नहीं है।  हम जो अभी हैं इस पल,  इस क्षण में जो हम हैं वो अगले ही पल में नहीं होंगे। हमारा हर अंग बदल रहा है। हमारे सारे तंतु, हमारी सारी कोशिकाएं लगातार बदल रहीं हैं। हमारी सोच, हमारे विचार भी परिवर्तित हो रहे हैं। हम क्या हैं, हम कौन हैं, हर अगले क्षण ही इसका उत्तर अलग अलग होगा। हम जो देख रहें हैं, जो कुछ भी हम सुन रहें हैं। वो सब हमें प्रभावित करके हमें परिवर्तित कर रहा है। नदी बह रही है, मेघ बरस रहे हैं, बादल गरज रहे हैं, डमरू का डम डम नाद गूंज रहा है,  जीव अपनी भौतिक आयु प्राप्त कर रहे हैं, प्राणी अपनी शक्ति को साध रहे हैं। यही अविरल है। यही सनातन है।गति ही सत्य है। गति ही चिरंतन है। जो है वो नहीं रहेगा और जो है नहीं वो हो जाएगा। सब कुछ बदल जाएगा। हर्ष, भय, प्रीत, कष्ट कुछ भी नहीं रहेगा। अगले क्षण ही सब कुछ परिवर्तित हो जाएगा। हमारी इन्द्रियां जो देख रहीं है,  हम जो सुन रहें हैं, जो स्पर्श कर रहें हैं, जो चिंतन कर रहें हैं उन सब के मिश्रण से हम अगले क्षण ही कुछ नए ह

जो बीत गया सो बीत गया

Happy new year 2024   Happy new year जो बीत गया सो बीत गया बीते साल को बिसार दे तुम लक्ष्य बेहद जरुरी था पर नववर्ष मे नाव को पार कर नव उमंग नव प्रेरणा से जीवन मे नव संचार दे तुम  जीवन में जीत जरूरी थी पर हार भी मजबुरी थी वह चला गया तो चला गया अम्बर के आनन को देखो कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गया तो छुट गया पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है जो बीत गया सो बात गया जीवन में लक्ष्य अटल था थे उस पर नित्य निछावर तुम वह टुट गया तो टुट गया मधुवन की छाती को देखो सूखी कितनी इसकी कलियाँ मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुवन शोर मचाता है जो बीत गया सो बात गया जीवन में सपना था परिश्रम पर दिन-रात तुमने तन मन दे डाला था वह टूट गया तो टूट गया मदिरालय का आँगन देखो कितने प्याले हिल जाते हैं गिर मिट्टी में मिल जाते हैं जो गिरते हैं कब उठतें हैं पर बोलो टूटे प्यालों पर कब मदिरालय पछताता है जो बीत गया सो बात गया मृदु मिटटी का जीवन है मधु घट फूटा ही करते हैं लघु जीवन लेकर आए हैं सपना टूटा ही करते हैं फिर भी जीवन के अन्दर मधु के घट हैं

बाप-बेटी का प्रेम

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 जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर में भी ज़िद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है। पर जैसे ही बाप मरता है और बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है।  और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं।  आपने भी महसूस किया होगा कि बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई- भाभी के घर वो जिद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था तब तक सब कुछ उसका था यह बात वो अच्छी तरह से जानती है।  आगे लिखने की हिम्मत नहीं है, बस इतना ही कहना चाहता हूं कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नहीं, और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है। बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है 🙏

करवा चौथ का व्रत/कहानी

 सभी महिलाओ को करवा चौथ के इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएं,  भगवान शिव और पार्वतीजी से प्रार्थना है कि सभी बहनों ने जो करवा चौथ पर व्रत रखा है उनकी मंगल कामनाएं पूरी करें,उनके पति की आयु लंबी करें,स्वस्थ रखे,मस्त रखे और जीवन में हमेशा खिलखिलाते रहें। 👉👉🌹🌹आज हम आपको  करवा चौथ की पौराणिक व्रत  कथा बतायेंगे !!!!!! 👉सुहागिन महिलाएं क्यों देखती हैं छलनी से पति का चेहरा? भारतीय महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं इसलिए यह व्रत और इसकी पूजा काफी सतर्कता के साथ की जाती है। सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस पूजा में प्रयोग होनेवाली हर चीज का अपना एक अलग महत्व है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह व्रत तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक पत्नी छलनी से चांद और अपने पति का चेहरा ना देख लें। 👉आखिर क्या है कारण ? सुहागन महिलाएं छलनी में पहले दीपक रखती हैं, फिर इसके बाद चांद को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत पूरा करवाते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि पहले चांद और फिर पति को छलनी से क्य

जंजाळ

 “जंजाल” शायं….. शायं…… दो सितारो का भारी भरकम भार लिए धधकती हूयी गाड़ी रुकती है। सफ़ेद बेल्टधारी युवक सीना ताने गाड़ी के दरवाज़े को खोलकर, 4  फ़ितीयों का भार लिए साहब के सामने हाथ उठाके, देश का जयकारा लगाता है। साहब सिर्फ़ मुंडी हिला कर प्रतिकार करते है।  साहब- कुछ पता चला? इसके बारे में। यह क्यूँ पंखे से लटकर……. सब मौन थे, इस समय ज़िंदा था तो सिर्फ़ फंदा, जो परिचित से व्यक्ति का भार लिए हुए सबको मौन किए हुए था। सावन का मोसम पर्वतों को जान दे रहा था। बरसात का पानी,सड़कों की गर्मी को धुआ बना कर हवा में उछाल रहा है। साहिल  आज दोपहर की शिफ़्ट के लिए जा रहा है। अपने भविष्य को बेहतर बनाने की चाह आज उसको और उसके मन को बार बार याद कर रही है। “वह आज से अपने गोल पर फ़ोकस करेगा” और “तुम यह कर सकते हो” के नारे आज उसके भीतर गूंज रहे है और प्रायः यही नारे गूंजते ही रहते है । वह चाहता है कि वो इस “जंजाल” से बाहर निकले, पर कोई और बेहतर उपाय नही है सिवाय “इसके बारे में न सोचने के” । सीढ़ी पर तीसरा कदम ही रखा था कि उसके कान में कुछ स्वर सुनायी पड़े “दिस सटेरस ओन्ली यूज़ फ़ोर ऑफ़िसर” । साहिल ने उपर देख

कितना स्वार्थी है मानव

कितना स्वार्थी है मानव... नदी से पानी नहीं   रेत चाहिए.... पहाड़ से औषधि नहीं पत्थर चाहिए.... पेड़ से छाया नहीं लकड़ी चाहिए...... खेत से अन्न नहीं नकदी फसल चाहिए उलीच ली रेत खोद लिए सब पत्थर काट लिए पेड़ तोड़ दी मेड़ कितना लालची है मानव.. रेत से पक्की सड़क  पत्थर से मकान बनाकर  लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर, अब भटक रहा हैं मानव.....!! सूखे कुओं में झाँकते, रीती नदियाँ ताकते, झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में, बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम....!!! और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन और भटक रहे छांव की खोज मे.. तपती दुपहरी बदबूदार हवा उजड़ती प्रकृति ओर सब बर्तन खाली सोने के अंडे के लालच में, मानव ने मुर्गी मार डाली !!!, कितना लालची है मानव.....

अग्निवीर

अग्निवीर तुम अग्नि बनकर चलना सीना के भारतभूमि की सेवा करना दुश्मनो की करतूतो से तुम पूत-सपुत हो भारत माँ के रक्षा करना समर्पण-भाव से फौलादी है सीना तुम्हारा बलशाली है भुजा तुम्हारी अग्निवीर तुम  अग्नि बनकर  चलना सीना तानकर

किसान के पसीने की चमक

फैली धरा में दूर तलक  खेतों की सुनहली हरियाली   लिपटी जिसमें रवि की किरणें  स्वर्ण-शिखा-सी मंजिल जाली  लहलाती सी,इठलाती सी  नव-यौवन में मदमाती बाला-सी सरसो की मंजूल-लाली तिनकों के हरित पर्ण पर  पीला सिंदूर सा झलक रहा पीत वसुधा तल पर झुका हुआ  नभ का नील निर्मल नीलांबर  रोमांचित सी लगती वसुधा  ओढ़ चुनरिया पीली जाली  बीच खेत में खड़ा है कृषक  सुखद चेहरा है खड़ा जो माली  देख खेत की हरी हरियाली  रंग-रंग के फूलों में रिलमिल  हंस रही है कृषक की घरणी  लहलाह रहे हैं खेत उनके दृगों  प्रसन्नचित्त है सकल घरवाले  हरियाली के तृण-तृण से  घूम रहा है कृषक का तन-मन खिलखिला रही है उसकी लाली खुशहाली है घर द्वार में  रंगीन संमा है सकल परिवार में

जैसी करनी-वैसी भरणी

सुल्तानपुर मे वर्षो नौकरी करने के बाद बाबूजी राजकीय सेवा से सेवानिवृत हुए और पति-पत्नी दोनो अपने जीवन की शेष बची जिंदगी खुशी-खुशी से काट रहे थे की एक दिन बाबूजी के जीवन मे बहुत बडा़ वज्रपात हो गया और बाबूजी की पत्नी का देहांत हो गया।बाबूजी बहुत दुखी हुए। पत्नी के अंतिम संस्कार के बाद पति पुरी तरह टूट्ट चुका था और तेरहवीं के बाद रिटायर्ड बाबू जी(शिक्षा विभाग) गाँव छोड़कर दिल्ली में अपने पुत्र अमित के बड़े से मकान में आये हुए हैं। अमित बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है। यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु अम्मा ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे। यहीं ठीक है। सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे। ठीक है न!'  बाबूजी ने कभी भी अम्मा जी की बात को नकारा नही केवल अम्मा जी की बात रखने के लिए... बस बाबूजी की इच्छा मर जाती। पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी इसलिए बनवारी(बाबूजी) दिल्ली आ ही गए हैं। अमित एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्प

श्रावणी-बेला

मेघा आए दूर से  आकाशा मंडराय  रिमझिम रिमझिम बरसे मेघ तृप्त धरा हरसाय  कृषक बोए खेत को  हीरा मोती प्रकटाए  बदरा बरसे खेत में  हरियाली बढ़ जाए  झूम उठे चिंतित कृषक भी जब  श्रावणी बूंद गिर जाए  चमक उठे हर चेहरा भी जब  श्रावणी घटा चहु दिसि छाए  बूंद पड़े जब बगिया में  हर कलियां हरषाय  पीक-शिखी के मुग्ध मौन मे    श्रावणी मधु बस जाए चहुदिशी नृत्य हरषित शिखी का  सतरंगी नृत्य दिखाय श्रावण है श्रृंगार धरा का  कली-कली खिल जाए मेघा बरसे जोर से जब  धरा मंद-मंद मुस्काए  अमृत बूंद के मिश्री घोल से  वातावरण रसीला हो जाए शंकर नाथ (व.अध्यापक,हिंदी)

सावन की बादळी

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श्रावण श्रंगी बादळी  तन मन को हरषाय  चहु दिसि मन मेघ-सा  बरसण को अधिकाय  अभिलाषा मनोयोग सी  वर्षा जल में तर जाए  श्रावणी समीर मोहनी प्रेम रंग चढ जाए नवोढा का चित चीरकर  विरह की आग लगाए  श्रावणी श्रंगी बादली  उनके मन को न भाय  खेती कृषक भायली  बाट लगाय बुलाए  हरी-भरी दुल्हनी धरा  सबके मन को लुभाए सतरंगी समा धरा पर  मोहनी दृश्य दिखाएं श्रावण श्रृंगी बादळी  तन मन को हरषाय    Shankar nath

गरीबी और बचपन

 मेरे बचपन की राहों में  बचपन गुजर रहा है केवल  ख्वाबों और निगाहों में  मेरे साथी खड़े हैं खेल के मैदानों में  मैं देखता हूं केवल उनको  कितने खुशनसीब हैं वे सब लोग  बीच मैदानों में भागते,दौड़ते,खिलखिलाते हैं  परंतु कभी-कभी सोचता हूं  कितने स्वार्थी हैं वे सब लोग  न कभी बुलाते न कभी खिलाते  और ना ही कभी बचपन में साथ निभाते  मैं गरीब हूं तो क्या हुआ  मेरा भी तो मन चाहता है  मैं खेलूं मैं कुदू मैं खिलखिलाऊ पर यह गरीबी है निगोड़ी  मेरा सब कुछ छीन लिया  न खेलने देती,न हंसने देती, न जिंदगी में खुशियां देती (एक गरीब बच्चे के जीवन पर समर्पित कविता)  लेखक: शंकर नाथ 

शब्द शक्ति,परिभाषा एवं उसके भेद

शब्द शक्ति परिभाषा:-शब्द के अर्थ को जिस माध्यम से ज्ञात किया जाता है उसे शब्द शक्ति कहते हैं आचार्य मम्मट ने अपनी ग्रंथि काव्यप्रकाश में शब्द शक्ति के तीन प्रकार बताए हैं- 1. अभिधा 2.लक्षणा 3.व्यंजना शब्द शक्ति.... शब्द.. अर्थ.. उदाहरण.... 1.अभिधा..वाचक.. वाच्यार्थ.. खेत में गाय चल रही है 2 लक्षणा.. लक्षक.. लक्ष्यार्थ.. राजस्थान साहसी है 3 व्यंजना.. व्यंजक.. व्यंग्य.... पानी गए ना उबरे मोती मानुष चून ➡️1.अभिधा शब्द-शक्ति मुख्य अर्थ का बोध कराने वाली शब्द शक्ति को अभिधा शब्द शक्ति कहा जाता है। 👉रामधन मिश्र के अनुसार साक्षात संकेतिक अर्थ के व्यापार को अभिधा शब्द-शक्ति कहते हैं। अभिधा शब्द शक्ति के संदर्भ में अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां... अभिधा शब्द शक्ति से जिन शब्दों का अर्थ बोध होता है वे तीन प्रकार के होते हैं- 1.रूढ शब्द 2.योगिक शब्द 3.योगरूढ़ शब्द 2 अभिधा शब्द शक्ति के अनेकार्थी शब्दों का निर्णय किया जाता है और वाक्य में एक अर्थ ग्रहण किया जाता है जैसे मोती एक नटखट लड़का है सीता के हार के मोती कीमती है हरी पुस्तक पढ़ रहा है विष्णु भगवान ने नारद को हरि रूप दिया कनक कन

'बालीनाथ जी की आरती'

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  🌹बाबा बाली नाथ जी की आरती🌹 ............................................... ओम् जय बालीनाथ हरे,स्वामी जय बालीनाथ हरे भगत जनों के संकट, भव से पार करें। ओम् जय… बालीनाथ सदा सहायक, नाथ सभी के तुम हो अमर हुए बाबा जबसे, धीराणे की लाज रखी।  ओम् जय… शीश जटा तपधारी,बाबा संतन के हितकारी हाथ कमंडल चिमटा, आसन मृगशाली। ओम् जय… नाथ,बैरागी तुम हो,सबके दुखहरता गोपालक रखवारे,सबके काज सरे।  ओम् जय… अंग भभूत रमाई, ज्योत जगे भारी भय मिटै दुख नाशक, तुम सबके के संगी। ओम् जय… रोट चढ़त चोवदस को, फूल मिश्री मेवा धूप दीप चन्‍दन से, आनन्‍द सिद़ध देवा। ओम् जय… भगत हित अवतार लियो, बाबा देख दुखी जनता दुष्‍ट दमन भय भंजन,भगत प्रति पाला। ओम् जय… बाली नाथ जी की आरती, जो जन गावे दुख मिटै सब तनका, सुख सम्‍पति पावे। ओम् जय…happy diwali 📝📝शंकर नाथ जाखड़  वरिष्ठ अध्यापक (हिन्दी) पल्लू-राजियासर लिंक रोड़ गांव-धीरदेसर,तहसील-रावतसर  जिला-हनुमानगढ़

बालीनाथ जी चालिसा

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गुरु चरणों में सीस धरु,करु प्रथम प्रणाम प्रथम निमण गुरूदेव को,बार बार प्रणाम आशिष देवो गुरूदेव मोहि,सेवा करुं निष्‍काम रोम रोम में रम रहा, रुप तिहारै नाथ दूर करो अवगुण मेरे, पकड़ो मेरा हाथ ................................................. बाली नाथ ज्ञान भंडारा, निशि दिवस जपु नाम तुम्‍हारा, तुम हो जपी सिद्ध अविनाशी, तुम हो 'धिराणै' रा वासी तुमरा नाम जपे नर नारी, तुम हो सब भक्‍तन हितकारी, तुम हो शिव शंकर के दासा, थार लोक तुम्‍हारा वासा, सर्व लोक तुमरा जस गावें, ॠषि-मुनि तब नाम ध्‍यावें, कन्‍धे पर मृगशाला विराजे, हाथ में सुन्‍दर चिमटा साजे सूरज के सम तेज तुम्‍हारा, मन मन्दिर में करे उजारा, बाल रुप धरी गऊ चरावे, धुणे की आप भबूत रमावें, अमर कथा सुनने को रसिया, करम तिहारे मोहि मन बसिया, धीराणे आप आसन लगाये, ग्वालो को जब पास बुलाये सात सिद्धी नव-निधि के दाता जो निमण करे सब सुख पाता ऐसा चमत्‍कार आपने दिखलाया, सब जन का तब रोग भगाया, रिद्धी-सिद्धी नवनिधि के दाता, तीनो लोक के भाग्य विधाता, जो नर तुमरा नाम ध्‍यावें, जन्‍म-जन्‍म के दुख विसरावे, अन्‍तकाल जो सिमरण करहि, सो नर मुक्ति भाव से तर

( थार का श्रृंगार) प्रेरणादायक कविता

थार की तेज तपन लू के तेज थपेड़ो  इन दोनों के बीच में एक पेड़  जो जबरदस्त गर्मी की मार जेलता हुआ  हंसमुख सा खड़ा है....... गर्मी मे मुस्कराता है जीवन का सार बतलाता है तन-मन अर्पन,जीवन समर्पन जीवन-राग सिखलाता सा पाताल लोक से रस खिंचता निर्जल वासी,जीवन अभिलाषी प्रकृति का माली,थार देश का आली शंकर नाथ 'योगी',राजस्थान #no_mask_no_entry

जिंदगी अभी अधूरी है

जिंदगी अभी अधूरी है  इसको पूरा करना मजबूरी है  संघर्षो में चलना जरुरी है  यही तो जिंदगी की असली धूरी है सुख-दुख इसके राही हैं सफलता इसका भाई है स्नेह उसकी परछाई है नयनों मे दीपक सा जलता है पलको पर तरंगिणी सी बहती है सफलता के प्यासे सपने मे कदमो मे ताकत जरुरी है लक्ष्य की मजबूती अभी अधूरी है जीवन को सफल बनाना जरुरी है तकरारो की दिवारो को तोड़ो ईर्ष्या की राहों को छोड़ो प्रेम के धागों को जोड़ो जिंदगी को सफलता की तरफ मोड़ो              💚 शंकर नाथ  वरिष्ठ अध्यापक                 भाटिया आश्रम सूरतगढ़

इंसानियत

विश्वास-निर्झर बह गया  बंजर ज्यो तन रह गया सूख गई मानवता की डाली बजा रहा है अब दानव ताली जीवन-शीर्ण हो गई इंसानियत की लाली मानव ने मानव का संहार किया कभी एटम बम से तो  कभी (कोरोना वायरस)जैविक बम से मानवता पर प्रहार किया खत्म हो गया विश्वास जगत में फैल रहा तिमीर वतन में ठूंठ तो हो गया मानव देखो उतर गया पानी मानव तन से इंसानियत देखो तड़पा रही ईर्ष्या सब जन को खाये जा रही मानवता तड़पा रही Shankar nath Dheerdesar,near bharat mala project,Pallu, hanumangarh,rajsthan,india Manwta hospital nasik

मैं नारी हूं

मैं नारी हूं,महतारी हू जग को तारणहारी हूं मैं पापा की प्यारी हूं  मैं माता की दुलारी हूं  मैं नारी हूं,महतारी हूं  मैं हारी हूं,मैं हारी हूं मैं दरिंदों से दुखियारी हूं  मैं नारी हूं,महतारी हू मैं ममता की क्यारी हूं मैं दो घरों की रखवारी हूं मैं नारी हूं,महतारी हूं मैं पन्ना हूं,मैं बारी हूं  मैं हर घर की रखवाली हूं मैं नारी हूं,मैं नारी हूं  मैं समाज कंटको से हारी हूं मैं सीता हूं ,मैं गीता हूं मैं ही सानिया,मै ही बबीता हूं मैं हर आंगन की तुलसी हूं   अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष  अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर सभी को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं

जिंदगी की ख्वाहिश

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आहिस्ता चल ए जिंदगी,अभी   शिक्षा की अलख जगाना बाकी है    शिक्षक हूं..... शिक्षक का फर्ज निभाना बाकी है  भारत भूमि पर जन्मा हूं  भारत मां का कर्ज चुकाना बाकी है  आहिस्ता चल ए जिंदगी, अभी  शिक्षा की अलख जगाना बाकी है  जन-जन की ख्वाहिशें अभी अधूरी है  अधूरी पड़ी ..... ख्वाहिशों को पूरा करना जरूरी है  गरीबी में पला बढ़ा हूं  गरीबी को मिटाना बहुत अभी जरूरी है  आहिस्ता चल ए जिंदगी,अभी  शिक्षा की अलख जगाना बाकी है  मां के आंचल में पला बढ़ा हूं  मां के दूध का फर्ज निभाना बाकी है  आहिस्ता चल ए जिंदगी,अभी   शिक्षा की अलख जगाना बाकी है अनपढ़,निरक्षर को,अभी  ज्ञान का दीप जाना बाकी है  आहिस्ता चल ए जिंदगी,अभी  शिक्षा की अलख जगाना बाकी है  युवा का सपना अभी अधूरा है  अधूरे सपनों को पूरा करना बाकी है  आहिस्ता चल ए जिंदगी अभी  शिक्षा की अलख जगाना बाकी है

बादळी (कविता)

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⛈☁⛈⛈☁ हवा में लहराती वो  बिना पंख के भी उड़ जाती वो  यायावरी से मदमाती वो  जीवन में सतरंगी खेल दिखाती वो  सावन में इसका रूप निराला  लगती वो रूपवती बाला  कहीं प्यार से तो  कहीं क्रोध में बरसती वो   श्रावण में नृत्यांगना सी वो कृषक के मनभाती वो  कभी पहाड़ पर तो कभी  मरुस्थल में चली जाती वो  जहां भी जाती सुंदर दृश्य दिखलाती वो  श्रावण की प्यारी बादळी कृषक की दुलारी बादळी जन मन को हरषाती बादळी ☁☁☁☁☁☁ लेखक:- शंकर नाथ जाखड़,धीरदेसर 

हिन्दी कविता

हिंदी मेरा तन हिंदी मेरा मन  हिंदी ही मेरा मनन ❤❤ हिंदी मेरा ज्ञान  हिंदी मेरा सम्मान  हिंदी ही मेरा स्वाभिमान  ❤❤❤

भारत के अन्नदाता (कविता)

🌿🌴🌴🌴🌿🌾🌿  तू मीत,सखा सहोदर हो हो नृप, भूप विधाता तुम हो हो जग के तारणहार, दीनदयाल भरता पेट सकल संसार सब तुम बांध गांठ पेट के खुद जग सेवा मे निस्वार्थ भाव से लगै हो देश सेवा में हे भूस्वामी नमन,वंदन,अभिनदन तूम को गर्व ग्लानि, मति मोहे मरण त्याग सभी तुम मन मस्त,है लगन,मेहनत करते तुम हो धन्य जगत जननी मात तुम्ही को हे विधाता,अन्नदाता नमन तुम्ही को, वंदन तुम्ही को #Istandwithfarmer

कविता

जीवन का उद्गार है कविता जीवन की अनुभूति का समाहार है कविता  सुख-दुख के भावें का श्रृंगार है कविता सत्य की अनुभूति के अनुसार है कवि ता कवि-कल्पना की भरमार है कविता  कवि हृदय की अंकुर का प्रभाव है कविता जनसाधारण पर असरदार है कविता कवि के कलम की मीठी धार है कविता छंद बद्ध रसों से सरोबार है कविता  अलंकारों से अलंकृत है कविता सामाजिक समस्या पर वार है कविता सामाजिक मूल्यों की रसधार है कविता  यति,गति,लय,ताल के अनुसार है कविता तुकबंदी के क्रमानुसार है कविता

पापी कोरोना (कविता)

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विक्रम संवत सत्ततरे भयो काल को साल चहुदिशि हाहाकार भये रुष्ट लगत तारणहार इक विषाणु की भयावह त्रास सकल संसार धनबल अंधीदौड़ मे करत है मानवता विनाश अछूत विषाणु की सह मे चलत चीन कुचाल सकल जगत भये बेहाल नाटा कद,कुटिल नेत्र से परास्त भये सकल संसार अर्थ तंत्र विफल भयो फिसड्डी हुआ सब कारोबार अग्रणी देश फिसड्डी भया जन का जन दुश्मन भया हुआ सब हाल बेहाल सकल मानवता तड़प रही है कोरोना विषाणु के कारणै

अध्यापक की पुकार(कविता)

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अजीब सी बेचैनी बना रखी है जीवन के हर कोने में कहां मिलता है सुख खाली पड़ी स्कूलों में बहुत कोशिश करते हैं दुनिया को कोरोना से बचाने की पर कोरोना है दुश्मन वह लगा है जीवन की हस्ती मिटाने पर पर सुन रे कोरोना.............................. हम बच्चों से दूर भले ही हैं पर दुआ साथ हैं बच्चों की हस्ती नहीं मिटेगी हमारी दुनिया में एक लंबे दौर तक आखिर में स्कूल भी खुलेगी उन्ही स्कूलों में बच्चे भी खिलखिलाएंगे माना कि साथ नहीं देती है -प्रकृति रोज बिगड़ता है रूप इसका हमें अफसोस नहीं इस कुरूप का हमें आशा है एक सुख भरे दिन की बच्चे भी आयेंगे,वो गीत भी गायेंगे झोंक देंगे हम सब ताकत अपनी बच्चों को पढ़ाने में...........................                          अध्यापक की कलम                            शंकर नाथ धीरदेसर                          रा.बा.मा.वि.अलीपुरा

कोरोना महामारी,(कविता)

फैली कोरोना महामारी यह खतरनाक है बीमारी। करती विश्व को प्रलयकारी। चाइना है इसका महतारी न दवा न कोई उपचारी छुआछूत की यह बीमारी दो गज की दुरी,रखना है जरुरी  घर में ही रहना है सबकी है मजबुरी कोरोना वैक्सीन है अभी अधूरी इसलिए सावधानी रखो सब पूरी मास्क पहनना है सबको जरूरी सकल जगत मे हाहाकारी मानवता पर हावी बीमारी जग की हालत विनाशकारी भयभीत है दुनिया सारी

मैं समय हूं।(कविता)

🕒🕒🕒🕒🕒 मैं समय हूं मैं निरंतर चलता हूं कभी रुकता नहीं कभी झुकता नही कभी थकता नहीं..... एक ही गति है मेरी कभी ठहरा सा लगता हूं तो कभी भागता प्रतीक होता हूं। कभी सुख के साथ तो कभी दुख के साथ कभी हंसाता हूं तो कभी रुलाता हूं मै ही तुझे जगाता हूं मैं ही तो तुझे सुलाता हूं मेरी कीमत मैं नहीं जानता जानने वाला भी तू ही है कभी तू मुझे भगाता है तो कभी मैं तुझे भगाता हूं। कभी मोहमाया के जाल में फंसाता हूं। न तो कोई मेरी गति समझ पाया और नहीं मेरा कोई कर्म मैं देखता हूं कि इस संसार में मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो इस सांसारिक मोह माया के जाल में फंस जाता है और मछली की तरह छटपटाता है। यह उनके बुरे कर्मों का ही प्रतिफल है। यह अभिशाप ही उनका परिणाम है हे मानव प्राणी.... अभी भी मैं यही रुका हूं तू मुझे समझ तू मेरे साथ चल तेरा कल्याण होगा।     शंकर नाथ धीरदेसर       वरिष्ठ अध्यापक

मरुवाणी(कविता)

🌅🌅🌅🌅🌅🌅 ऊंचे रेत के टीलों पर पेड़ नहीं लगते पौधे नहीं उगते न ही घास लहलहाती है। उठते हैं तो सिर्फ धूल के गुबार। जो आसमान में उठते हैं उसको बदरंग कर देते हैं और चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा जाता है। यह दृश्य हैं जेठ के महीने का। जिसमें सब प्राणी त्राहिमाम करते हैं। उसके बाद......... ⛈⛈⛈⛈⛈ जब आती है वर्षा ऋतु तो चारों तरफ घनघोर घटाएं छा जाती है आसमान मे मानो बाढ आ गई हो कड़कती है बिजली और बरसते है बादल तो मरु मे महकार आ जाती है खुश होते हैं हलदर और उसके बैल खुश होती है मरूधरा तो खुशबू मिट्टी की चारों तरफ फैल जाती है लहलाती है फसलें तो ऐसा लगता है मानो मरूवण ने हरियाली चुनर ओढ ली हो और मरुधर में बहार आ गई हो खुश होते पशु-पक्षी तो मरू मे जीवन की रसधार आ जाती है

कोरोना को हराना(कविता)

जगत में फैला कोरोना आ रही है मुश्किले, पर इससे डरो-ना मुंह पर मास्क, हाथ भी धोना है। कोरोना है,कोरोना इसे बिल्कुल भी डरो ना डरो ना पर,लापरवाह नही होना है कोरोना है,कोरोना !जगत से इसे मिटाना है  मिल सभी को कोरोना को धोना है विश्व में फैली महामारी इसी का तो रोना है हाथ मिलाना नहीं,नमस्ते ही करना है हाथ साबुन डिटोल से ही धोना है डरो मत,कोरोना को ही तो धोना है भारत भूमि की पावन धरा से समूल कोरोना को मिटोना है। हम भारत की संतान हैं आतंक,नक्सलवाद से भी लड़े हैं, यह तो सिर्फ कोरोना है हम मिलकर इसे भगाएंगे कोरोना को भारत से मिटायेंगे।               Shankar nath               Hanumangarh #coronavirus #corona # coronavirus update # Corona fight India

फाल्गुनी-आभा(कविता)

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🌄🌄🌄🌄🌄 अंग के रंग लगाई के मन मे बहुत उमंग अंग अंग में रंग लगत है हृदय बही तरंग। हर्षित-जनों की देख खुशी वसुधा रंगी बहुरंग चंग की मृदंग बजत सतरंगी स्वर उठत रगरसिया नचत पग पायल बजत रसिका ठुमक-ठुमक चलत हियरा संग-संग नचत होली की हुड़दंग मे अपने के संग मे रंग गुलाल अबीर के संग मे संतरंगी आभा फागुन की

जाग मुसाफिर जाग(कविता)

🙇🙇🙇🙇 जाग मुसाफिर जाग तेरे जगने की है आस क्यों है तू इतना निराश दिनों-दिन होता हताश जाग मुसाफिर जाग क्या तुमने पाया जग में क्या तुमने खोया मग मे क्यों है इतना उदास जाग मुसाफिर जाग क्या विपत्ति है तुम पर आई क्यों इतना घबराया है भाई क्या समस्या है तुझ पर छाई जाग मुसाफिर जाग जग में आया कुछ नहीं पाया आलस में है घर बनाया फिर कहता है- कुछ नहीं पाया जाग मुसाफिर जाग 🏃🏃🏃🏃🏃 जब-जब है तू दौड़ा संयम का साथ है छोड़ा आत्मविश्वास को नही जोडा़ इसलिए जीवन का रूख है मोड़ा जाग मुसाफिर जाग उम्मीद न टूटे, हौसला न छूटे आत्मविश्वास के सहारे जीवन का रूप संवारे जाग मुसाफिर जाग बैसाखियां छोड़ बहाने की आदतें छोड़ पुराने जमाने की आत्मबल से चलना सीख जाग मुसाफिर जाग दर्द बहुत है जमाने में हौसला रख ले तू कमाने में कोई हारा है कोई बेसहारा है पर निखरा वही जो चलनवारा है जाग मुसाफिर जाग देख हौसला चिंटी का दीवार पर चढ़ती है हजारों बार गिरती है कोशिश बेकार नहीं जाती है आखिर सफलता की सीढ़ी पर चढ़ जाती है जाग मुसाफिर जाग अंगारों पर चलना होगा तूफानों से टकराना होग

मैं शब्द हूं(कविता)

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मैं शब्द हूं तोड़ो-मरोड़ो पर सार्थक हूं तो अर्थ देता हूं निरर्थक हूं तो अनर्थ कर देता हूं मेरा वजूद पूरी दुनिया है पूरी दुनिया मुझ में लय है मैं पूरी दुनिया में लय हूं मैं बच्चा हूं ना समझ और मासूम हूं मुझे भावों में पिरोलो और एहसासों में संजोलो तो जीवन आसान बना देता हूं मेरे से ही तो बच्चे-बूढ़े की पहचान होती है मैं ही हूं जिससे समझ-नासमझ का श्रृंगार मिलता है मुझको संभल कर काम में लेना वरना बना बनाया काम बिगाड़ देता हूं मेरे(शब्दों) से ही तो खुशी और गम का एहसास होता है मेरे(शब्दों) में ही तो सूरत और बे-सूरत का श्रृंगार होता है        Shankar nath

शीत-ऋतु

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शीत-ऋतु थी,कंपकंपता प्रदेश पल-पल कंम्पित प्रकृति-परिवेश बर्फिली हवा की रफ्तार चुबती सकल संसार बढता धुंध का गुब्बार चकित जनसमुह बार-बार करता जन-जन हाहाकार था हिमालय भी कुपित बढता बर्फ का विस्तार अपने शीत-पिड़ित-दृग फार लपेटे लाव-लश्कर किरणे सहित चकित दिनकर भी दक्षिण मे प्रस्थान शिशिरांशु की चन्द्रिका शीतल शीतज्वर सा शीतकर को चहुदिशी शीतलता प्रखर शीततरंग है भूतल पर मणिक सरिस बुन्दे ओस की विस्तारित सकल भूतल पर स्वर्णिक बुन्दे है फसल रबी पर शीत से पिड़ित जन है, कुंठित मन-बदन  अलाव से तपता तन है, निगौड़ी शीत  मनुज पर रख प्रीत....🖋🖋 Shankar nath

" सरस्वती-सदन"(कविता)

विद्यादायिनी का वरदान सदन में शिक्षा की बहती रसधार वतन में माता-पिता जैसा व्यवहार सदन मे बच्चों को मिलता प्यार जगत में एमडीएम का मिट्ठा स्वाद सदन में बच्चो के सर्वांगीण विकास बदन मे प्रार्थना सभा में संगीत सदन में बच्चों का लहराता राग गगन में गुरुजनों का आशीर्वाद सदन में संस्कारों का गुणगान मनन में अनुशासन का सम्मान सदन में अध्यापकों का फैला प्यार चमन में गुरु-शिष्य संम्बन्धो की प्रगाढता सदन में सब रिश्तो का आदरभाव ज़हन में पुस्तकों का आदर-भाव सदन में गुणीजनों का गुणगान है उनमे                        शंकर नाथ हनुमानगढ़ shankarlalnath.blogspot.com             

बापू(कविता)

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बापू प्रतीक है सत्य ,अहिंसा और सत्याग्रह का बापू रक्षक है गरीब,किसान और हरिजन का बापू आदर्श है शांति ,सद्भावना और धर्म का बापू प्रतिकार है अस्पृश्यता ,हिंसा और मक्कारी का बापू सम्मान है राष्ट्रप्रेम,कर्त्तव्य और अधिकारों का बापू का सम्मान होगा न्याय,स्वच्छता और भाईचारा से        **    Shankar nath ** shankarnath86.wordpress.com shankarnath283@gmail.com shankarlalnath.blogspot.com

"किसान के अधूरे सपने"(कविता)

👉सोचा था मां-बाप के पद-चिन्ह पर चलूं खेती करू,बच्चों को पढ़ाऊ पत्नी के गहने बनवाऊ बेटे की ख्वाहिश थी ... पापा-मैं नौकरी करूं उच्च-शिक्षण संस्थान में पढ़ू परंतु मैं बेटे की उस इच्छा को पूरा न कर सका बेटी की ख्वाहिश थी पापा-मैं कॉलेज जाऊंगी पढ़ लिखकर कामयाब बनूंगी अफसोस!बेटी के ख्वाब को पूरा न कर सका पत्नी की ख्वाहिश थी उनके मां बाप गरीब थे,गहने न बनवा सके पत्नी की अभिलाषा थी,गहने बनवाऊं परंतु पत्नी के ख्वाब को भी पुरा न कर सका जिंदगी में खूब मेहनत की,सपने देखे इसके के लिए जीवन को दांव पर लगा दिया ख्वाहिशें मेरी और मेरे परिवार जनों की अफसोस! उनकी ख्वाहिश पुरी न कर सका सोचा था कुछ नया करूंगा परंतु .......... किसी का भी साथ नहीं मिला धिक्कार है ऐसे जीवन को जो हमेशा पीसा जाता है इसमें न तो ख्वाहिशें और न ही सपने पुरे होते कभी साहूकार कोसते हैं तो कभी बंटाईदार कोसते है अंत में सोचा की सरकार की 'किसान सम्मान निधि'लाभ देगी परंतु वह भी 'ऊंट के मुंह में जीरा ' जीवन में खूब दौड़ा,भागा की दो जून की रोटी का प्रबंध कर सकूं .. अफसोस!कभी आंधी

" गरीब किसान का दर्द"

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घर में .................. एक गाय थी ......... उसने चारे के अभाव में लात मार दी भटकता रहा उस चारे की खोज में न चारा ला सका और न ही दुधधारा बहा सका घर में ..................... एक बूढ़ी मां थी......... आंखों से अंधी,बीमारी से जकड़ी हुई भटकता रहा मां की दवाई की खोज में न दवा ला सका और न ही मां को बचा सका घर में............... एक बकरी और उसके दो सुंदर बच्चे थे.. सोचा बच्चे बड़े होंगे और बकरी दुध देगी न हीं बकरी ने दूध दिया न हीं बच्चे बड़े हुए घर में...................... एक बच्चा था........... सोचा था बच्चे को पढ़ाउगां,शिक्षित बनाउगां मैं न बच्चे को पढा सका और न ही शिक्षित बना सका अंत में वह घर ही....... उस घर मे न मैं रह सका न ही परिवार गरीबी के कारण सबकुछ चला गया न जिदगीं बची न जमीन बचा सका.. .......गरीब किसान........

"हिन्दी भाषा की ताकत"

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भारत का प्रकाश है इसमें जन-जन की पुकार है इसमें भारतीयों का प्यार है इसमें राष्ट्रभाषा की दरकार है इसमें समरसता का सार है इसमें अखंडता का भार है इसमें संस्कारों की भरमार है इसमें चेतना की पुकार है इसमें गरीबों की सरकार है इसमें राष्ट्रप्रेम की दरकार है इसमें संस्कृति की झलक इसमें भ्रातृत्व की भावना है इसमें आर्यों की सद्भावना है इसमें नाथ-सिद्धों की छाप इसमें जैनों-साहित्य की बात है इसमें वीर रस की सौगात है इसमें श्रंगार रस की छाप है इसमें भक्ति  की रसधार है इसमें वात्सल्य का प्यार है इसमें छंदों की भरमार है इसमें व्याकरण की धार है इसमें संस्कृती का प्रचार है इसमें अत्याचारों का प्रतिकार है इसमें प्रेमचंद जैसे कलमकार है इसमें अपभ्रंश का सुधार है इसमें कबीर का विस्तार है इसमें लोक कल्याण का सार है इसमें (14 सितम्बर- हिन्दी दिवस की मंंगलकामनाएं)                   शंकर नाथ,धीरदेसर (हनुमानगढ़)                        वरिष्ठ अध्यापक (हिंदी)         राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय                         अलीपुरा (अजमेर)

शिक्षक दिवस

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हमारी सृष्टि की संरचना करने में देवों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है- ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता,विष्णु पालनहार और महेश को सृष्टि का संहारक कहा जाता है। मनुष्य को इस संसार में जीवनयापन करने के लिए आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तरह से जीवन यापन करना पड़ता है।आध्यात्मिक स्वरूप को आगे बढ़ाने के लिए उसको एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता रहती है और इस भौतिकवादी युग में आगे बढ़ने के लिए एक शिक्षक की आवश्यकता रहती है आज का युग भौतिकवादी युग है अतः अपने जीवन निर्वाह के लिए निजी व्यवसाय,उद्यम कला-कौशलता में निपुणता प्राप्त करने के लिए एक श्रेष्ठ गुरु की आवश्यकता रहती है उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक सच्चे,संस्कारवान,दया-भावी, परोपकारी और सहिष्णुता शिक्षक की आवश्यकता रहती है प्राचीन काल में बालक बड़ा होने पर गुरुकुल आश्रम में शिक्षा ग्रहण के लिए भेज दिया जाता था। 25 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करते हुए शिक्षा ग्रहण करते थे और उसके बाद ग्रहस्थ जीवन में आते थे ।आश्रम में रहते हुए शिष्य गुरु की सेवा- सुरक्षा करता था ।प्राचीनकाल में शिक्षा का स्वरूप मौखिक था  जब से लेखन सामग्री का आविष्का

" गांव हमारा प्यारा प्यारा"

गांव हमारा-सबसे प्यारा हनुमानगढ़ है जिला हमारा गांव 'धीराणा' सबसे न्यारा बालीनाथ जी रक्षक हमारा जन-जन को है देते सहारा जय-जयकार से गूंजे दवारा साफ-सफाई रखते हैं सारे गली गांव है स्वच्छ हमारे बीच गांव में कंवर केसरा हम सबका है वह परमेश्वरा पीपल प्यारे,छांव के सहारे शीतल छांव मे हताई के नजारे गांव उत्तर में स्कूल है हमारा शिक्षा पाते है गांव है सारा मीठी बोली,मीठी है वाणी आदर-भाव से भरपूर है सारे बुड्ढे-बुजुर्ग है दाता हमारे सज्जन पुरूष है लोग हमारे जात-पात का भेद ना हमारे समन्वय भावना रखते सारे माता-बहन है सुखी हमारी घर-घर की है लक्ष्मी है सारी युवा गांव के शान है सारे शिक्षा में है- बाजी मारे हथाई है-गांव की भाईचारा सबको सम्मान,सबको सहारा हरे-भरे हैं खेत हमारे आमदनी का स्रोत है सारे खुली हवा है सुंदर नजारे 'नाथ' शंकर को लगते प्यारे            शंकर नाथ,धीरदेसर हनुमानढ़़ shankarlalnath.blogspot.com 

बच्चे हैं सबसे अच्छे

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छोटे-छोटे बच्चे  दिल के सच्चे बच्चे  बातों के पक्के बच्चे मन के थोड़े कच्चे                                   खेले- कूदे बच्चे                                   शोर मचाए बच्चे                                   सब बच्चे हैं अच्छे                                   रोज पढ़ते हैं बच्चे  नहाए बच्चे,खाए बच्चे  जग को हंसाये बच्चे मंद मंद मुस्काते बच्चे ककहरा गाते बच्चे                                  दादी के पोते बच्चे                                   कहानी सुनते बच्चे                                  हंसे हंसाए बच्चे                                   विद्यालय जाते बच्चे  नमस्ते कहते बच्चे  बादाम खाते बच्चे  प्यारे-प्यारे बच्चे  बच्चे कितने अच्छे                                    टा-टा करते बच्चे                                    लगते बहुत अच्छे                                    दूध पीते हैं बच्चे                                   बॉडी बनाते हैं बच्चे  कितने अच्छे बच्चे खिलखिलाते बच्चे हंसते-गाते बच्चे बच्चे हैं सबसे अच्छे

छोटे-छोटे बालक

हुआ सवेरा मम्मी बोली  बच्चों ने तब आंखें खोली  अच्छे बच्चे धोक लगाते  मम्मी से आशीर्वाद पाते  मम्मी जब दूध पिलाती है  बच्चों में उर्जा आती हैं  खेले बच्चे,गाये बच्चे  दौड़ दौड़ कर नहाये बच्चे  गिनती बोले,शोर मचाए  ककहरा  की राग सुनाएं दौड़ दौड़ कर शाला जाए मां सरस्वती के धोक लगाएं सफल जीवन का आशीष पाये गुरु चरणों में शीश नवाए आदर्श गुणों की विद्या पाये गुरु जी हम-सब को पढ़ाएंगे  हमे आदर्श पुरुष बनाएंगे तभी तो हम महान कहलाएंगे  जीवन को सफल बनाएंगे  भारत की गाथा गाएंगे  देश को मान बढ़ाएंगे  भारत मां के शीश नवाएंगे            शंकर नाथ जाखड़           धीरदेसर,हनुमानगढ़

संघर्षी जीवन

मुझे कदम-कदम पर सुख-दुख मिलते हैं दुख सिखाता जीवन कहानी सुख मिटाता जीवन जुबानी मुझे कदम-कदम पर सुख-दुख मिलते हैं सुख जीवन की हानि है दुख सुनाता जीवन कहानी है मुझे कदम कदम पर सुख दुख मिलते हैं सुख में जब सरस इतराता हूं दुख की परिभाषा सुनाता हूं मुझे कदम-कदम पर सुख-दुख मिलते हैं मुझे दुख ने अनुभव ज्ञान दिया सूख ने मिटा कर सब साफ किया मुझे कदम-कदम पर सुख-दुख मिलते हैं जब याद आता है-यह वक्त गुजर जाएगा तो सुख मे दुख और दुख मे सुख का समन्वय मुझे कदम-कदम पर सुख दुख मिलते हैं सुख-दुख में समरसता है सुख-दुख जीवन की कहानी

कश्मीरी-केसर

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गूंज उठा घाटी का कण कण चमक उठी केसर की रसधार है जन्नती हिमानी की घाटी में बर्फानी हवा की बहार है  थिरक  रही सूरज की किरणें  गूंज उठा डल में राग मल्हार है  उच्च हिमालय मुकुट बना है  वहा शिव की गंगा -धार है  अमरनाथ की प्यारी यात्रा  उसमें भोले का जयकार है  दमक उठा घाटी का पत्थर  अब पत्थर प्यार का पैगाम है  पत्थर गिरा के, पुस्तक उठा के  विद्यालय जाता हर परिवार है  अमन ,शांति फैली है घाटी में हर कश्मीरी गाता राग मल्हार  बोल उठा कश्मीरी बालक  जग मे भारत देश महान है   कश्मीरी केसर की क्यारी  केसर की फैली बहार है  जाग उठा कश्मीरी जन-जन  भारत मां का जय जयकार है                 शंकर नाथ.....

स्वर्ग-भूमि

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स्वर्ग सा कश्मीर हमारा भारत भूमि की जान है कश्मीरी केसर की खुशबू इसकी  खुशबू महान है अटल हिमालय उत्तर भूमि मे भारत प्रहरी इसका नाम है सिंधु झेलम है नित्य- वाहिनी सत्य- वाहिनी कल नाद है लाखों में लद्दाख है प्यारा भारत भूमि की पहचान है अमरनाथ की प्यारी यात्रा उसमे भोले की अनुगूंज है मां वैष्णो का परम धाम है उसमे मातृभुमि का शंकनाद है एक विधान है एक निशान है भारत का तिरंगा महान है                शंकर नाथ धीरदेसर

" सुख-दुख के साथी "

सुख दुख के साथी है मेरे मित्र सफल जीवन की कहानी हैं मेरे मित्र गिरते जीवन को संभाले हैं मेरे मित्र जीताते मुझे हारे हैं मेरे मित्र कलम मैं हूं, पुस्तक है मेरे मित्र बूंद मै हूं, समुंद्र है मेरे मित्र विद्यार्थी मै हूं, अध्यापक है मेरे मित्र राही मैं हूं, पथ- प्रदर्शक है मेरे मित्र जीवन मै हूं, जुबानी है मेरे मित्र हवा में हूं, तूफान है मेरे मित्र खेल में हूं, खिलाड़ी है मेरे मित्र पुजारी मैं हूं, देव है मेरे मित्र रंक में हूं, राजा है मेरे मित्र लेख मैं हूं, लेखक है मेरे मित्र कलम मैं हूं, दवात है मेरे मित्र पृष्ठ मैं हूं, पुस्तक है मेरे मित्र फूल मैं हूं, उपवन है मेरे मित्र सुदामा मैं हूं, कृष्ण है मेरे मित्र               आप सबका साथी                  शंकरनाथ

" सावन "

हरे हरे ये खेत सावन में भीगी रेत किसान का वर्षा-हेत उड़ते धवल-हंसों की रेख सब सावन की कहानी बयां करते है। मोर-पपैया का राग नन्हे पौधे पर पराग नववधू का कांत-राग पानी से भरा तालाब उसके किनारे उगी घास सब सावन की कहानी बयां करते हैं। पेड़ पर लटका झूला सावन का रंग सुरीला चिंटी का खेल हठिला कोयल का बोल रसीला सब सावन की कहानी बयां करते हैं। खेतो में जुते बैल पशुओं की रेलम- रेल बच्चों का किश्ती-खेल कीट पतंगों की चहल सब सावन की कहानी बयां करते हैं ।                 शंकर नाथ, धीरदेसर                    व.अ.(हिन्दी)              रा बा मा वि -अलीपुरा(अजमेर)          

मेघा नीर बरसाए

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                 "मेघा नीर बरसाए" मोर जंगल में पंख लहरावे  पपैया सावन में शोर मचाए  उमड़- घुमड़ कर मेघा आये  मेघा झमाझम नीर बरसाए                         इंद्र नाचे समुन्द्र लहराए                         घूम -घूमकर मेघा आए                        प्यारी कोयल सावन गाए                         मेघा झमाझम नीर बरसाए  दुखी अन्नदाता पुकार लगाएं  समुद्र में लहरें सावन गाए  चारो दिशा से मेघा आए मेघा झमाझम नीर बरसाए                       नन्ही कलियां प्यासी मुरझाए                       इंद्र क्रोध में हुकुम चलाएं                      समुन्द्री- लहरे कलनाद सुनायें                       मेघा झमाझम नीर बरसाये  शिव सावन में तांडव दिखाएं  देव गगन से फूल बरसाए  खुशी से इंद्र जल बरसाए  मेघा झमाझम नीर बरसाए                        जब भारत के लोग बुलाये                        दक्षिण से दौड़े मेघा आए                        नन्हे बच्चे तब गीत सुनाए                        मेघा झमाझम नीर बरसाये  सावन में पौधे आलिंगन हो जाए  तब मेघा बरसे , धरती

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