"किसान के अधूरे सपने"(कविता)
👉सोचा था
मां-बाप के पद-चिन्ह पर चलूं
खेती करू,बच्चों को पढ़ाऊ
पत्नी के गहने बनवाऊ
बेटे की ख्वाहिश थी ...
पापा-मैं नौकरी करूं
उच्च-शिक्षण संस्थान में पढ़ू
परंतु मैं बेटे की उस इच्छा को पूरा न कर सका
बेटी की ख्वाहिश थी
पापा-मैं कॉलेज जाऊंगी
पढ़ लिखकर कामयाब बनूंगी
अफसोस!बेटी के ख्वाब को पूरा न कर सका
पत्नी की ख्वाहिश थी
उनके मां बाप गरीब थे,गहने न बनवा सके
पत्नी की अभिलाषा थी,गहने बनवाऊं
परंतु पत्नी के ख्वाब को भी पुरा न कर सका
जिंदगी में खूब मेहनत की,सपने देखे
इसके के लिए जीवन को दांव पर लगा दिया
ख्वाहिशें मेरी और मेरे परिवार जनों की
अफसोस! उनकी ख्वाहिश पुरी न कर सका
सोचा था कुछ नया करूंगा परंतु ..........
किसी का भी साथ नहीं मिला
धिक्कार है ऐसे जीवन को
जो हमेशा पीसा जाता है
इसमें न तो ख्वाहिशें और न ही सपने पुरे होते
कभी साहूकार कोसते हैं तो
कभी बंटाईदार कोसते है
अंत में सोचा की सरकार की
'किसान सम्मान निधि'लाभ देगी
परंतु वह भी 'ऊंट के मुंह में जीरा '
जीवन में
खूब दौड़ा,भागा की
दो जून की रोटी का प्रबंध कर सकूं ..
अफसोस!कभी आंधी तो कभी बाढ़ ने
कभी अतिवृष्टि ने तो कभी अनावृष्टि ने
इन सब ने जीवन को बर्बाद किया
.....(किसान का दर्द)......
शंकर नाथ,धीरदेसर हनुमानगढ़
मां-बाप के पद-चिन्ह पर चलूं
खेती करू,बच्चों को पढ़ाऊ
पत्नी के गहने बनवाऊ
बेटे की ख्वाहिश थी ...
पापा-मैं नौकरी करूं
उच्च-शिक्षण संस्थान में पढ़ू
परंतु मैं बेटे की उस इच्छा को पूरा न कर सका
बेटी की ख्वाहिश थी
पापा-मैं कॉलेज जाऊंगी
पढ़ लिखकर कामयाब बनूंगी
अफसोस!बेटी के ख्वाब को पूरा न कर सका
पत्नी की ख्वाहिश थी
उनके मां बाप गरीब थे,गहने न बनवा सके
पत्नी की अभिलाषा थी,गहने बनवाऊं
परंतु पत्नी के ख्वाब को भी पुरा न कर सका
जिंदगी में खूब मेहनत की,सपने देखे
इसके के लिए जीवन को दांव पर लगा दिया
ख्वाहिशें मेरी और मेरे परिवार जनों की
अफसोस! उनकी ख्वाहिश पुरी न कर सका
सोचा था कुछ नया करूंगा परंतु ..........
किसी का भी साथ नहीं मिला
धिक्कार है ऐसे जीवन को
जो हमेशा पीसा जाता है
इसमें न तो ख्वाहिशें और न ही सपने पुरे होते
कभी साहूकार कोसते हैं तो
कभी बंटाईदार कोसते है
अंत में सोचा की सरकार की
'किसान सम्मान निधि'लाभ देगी
परंतु वह भी 'ऊंट के मुंह में जीरा '
जीवन में
खूब दौड़ा,भागा की
दो जून की रोटी का प्रबंध कर सकूं ..
अफसोस!कभी आंधी तो कभी बाढ़ ने
कभी अतिवृष्टि ने तो कभी अनावृष्टि ने
इन सब ने जीवन को बर्बाद किया
.....(किसान का दर्द)......
शंकर नाथ,धीरदेसर हनुमानगढ़
टिप्पणियाँ