जीवन क्या है और कैसे जिए

 जीवन बह रहा है। 

हर कण हर क्षण बह रहा है, 

हर कण अपना स्वरूप भी परिवर्तित कर रहा है। सब कुछ गतिमान है। 

कुछ भी स्थिर नहीं है। 

हम जो अभी हैं इस पल, 

इस क्षण में जो हम हैं वो अगले ही पल में नहीं होंगे। हमारा हर अंग बदल रहा है। हमारे सारे तंतु, हमारी सारी कोशिकाएं लगातार बदल रहीं हैं। हमारी सोच, हमारे विचार भी परिवर्तित हो रहे हैं। हम क्या हैं, हम कौन हैं, हर अगले क्षण ही इसका उत्तर अलग अलग होगा। हम जो देख रहें हैं, जो कुछ भी हम सुन रहें हैं। वो सब हमें प्रभावित करके हमें परिवर्तित कर रहा है। नदी बह रही है, मेघ बरस रहे हैं, बादल गरज रहे हैं, डमरू का डम डम नाद गूंज रहा है,  जीव अपनी भौतिक आयु प्राप्त कर रहे हैं, प्राणी अपनी शक्ति को साध रहे हैं। यही अविरल है। यही सनातन है।गति ही सत्य है। गति ही चिरंतन है। जो है वो नहीं रहेगा और जो है नहीं वो हो जाएगा। सब कुछ बदल जाएगा। हर्ष, भय, प्रीत, कष्ट कुछ भी नहीं रहेगा। अगले क्षण ही सब कुछ परिवर्तित हो जाएगा। हमारी इन्द्रियां जो देख रहीं है,  हम जो सुन रहें हैं, जो स्पर्श कर रहें हैं, जो चिंतन कर रहें हैं उन सब के मिश्रण से हम अगले क्षण ही कुछ नए हो जायेंगे। ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से हमारे भूतों का परिवर्तन सुनिश्चित है। हमारा आहार ,विचार, व्यवहार कुछ भी स्थाई नहीं है। हम जैसे आज हैं। कल वैसे नहीं होंगे। 


स्वयं को जानना है यदि तो हमें इसी क्षण में रहना होगा। एकाग्र चित्त रहना होगा। प्रत्याहार करना होगा।काल के परे जाना होगा। बाह्य जगत से संपर्क को नियंत्रित करना होगा। जैसे देखेंगे, जैसा सुनेंगे, जैसा स्पर्श करेंगे, जैसे गंधित होंगे और जैसा जिह्वा से ग्रहण करेंगे वैसा ही हम मनन-चिंतन करेंगे और वास्तव में हम वैसे ही हो जाएंगे। 


हम सभी स्वयं को जान पाएं। 

हम सभी बाह्य जगत से अपने संपर्क को नियंत्रित कर पाएं।

हम सभी सकारात्मक हों।

हम सभी उत्सुक हों।

हम सभी जाग्रत हों।

हम सभी का जीवन उदीयमान हो।


जय हिंद।

जय भारत।

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