अंतरिक्ष यात्री शुभांशु (एक प्रेरणादायक कविता)
अंतरिक्ष यात्री शुभांशु
(एक प्रेरणादायक कविता)
चाँद सितारों की खोज में निकला,
धरती का बेटा, सपनों से पला।
नाम है उसका 'शुभांशु' वीर,
आकाश को छूना था उसका अधीर।
छोटे गाँव की गलियों से आया,
ज्ञान की लौ में खुद को जलाया।
किताबों में देखा उसने गगन,
सोचा — क्यों न पहुँचूँ उस अम्बर तक मैं मगन।
धरती को छोड़ा, नभ को चूमा,
अंतरिक्ष को पहली बार उसने छुआ।
नेत्रों में चमक, दिल में भरोसा,
विज्ञान था उसका सबसे बड़ा साथी और संकल्पित टोसा।
शून्य गुरुत्व में भी संतुलन पाया,
तारों की भाषा को समझ कर आया।
संदेश लाया मानवता के लिए,
“संभव है सब कुछ — बस हो नीयत सच्ची और दिशा सही लिए।”
अब लौट आया वो धरती पर फिर,
बचपन के आँगन में है वही ताजगी और नीर।
पर अंतर में है अब एक नया ज्ञान,
कि सीमाएँ टूटती हैं, जब इरादा हो महान।
— जय हो शुभांशु, अंतरिक्ष का पथिक,
तेरे जैसे सपनों से ही जग बने अधिक विकसित
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