" बचपन के खेल" कविता

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खेल खेल
वो बचपन के खेल 
वो बचपन की खुशियां 
काश !वो बचपन के खेल वापस आ जाते।

खेल- खेल
वो छुपन-छुपाई का खेल
छुपकर आते,हाथ लगाते
मन खुशियों से भर जाते 
काश !लुक्काछिपी का खेल वापस आ जाते।

खेल-खेल
वो कंचे का खेल
निशाना सिखाता, प्रेम बढ़ाता
काश !वह कंचे का खेल वापस आ जाते।

खेल खेल
वह गिल्ली -डंडे का खेल
दौड़-धूप कर पसीना बहाते
काश !गिल्ली डंडे का खेल वापस आ जाते।

खेल खेल
वो चोर- सिपाही का खेल
दोस्त बनाते,समूह बढ़ाते
काश! चोर-सिपाही का खेल वापस आ जाते।

खेल-खेल
वो लंगडी़-टांग का खेल
नियंत्रण सिखाता, बचपन बढ़ाता
काश !लंगड़ी-टांग का खेल वापस आ जाते।

खेल-खेल 
वो आंख -मिचौली का खेल
आत्म-शुद्धि,बल-बुद्धि,भाईचारा बढ़ाता
काश!आंख-मिचौली का खेल वापस आ जाते

खेल-खेल
वो गुट्टे का खेल
हाथों की चंचलता, मन का प्रेम
काश ! गुट्टे(गट्टा) का खेल वापस आ जाते।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
           👬💂 शंकरलाल,धीरदेसर(हनुमानगढ)
            वरिष्ठ अध्यापक (हिन्दी)
            राजकीय बालिका माध्यमिक वि.-                    अलीपुरा (अजमेर)

टिप्पणियाँ

Shankar nath ने कहा…
सुझाव जरुर देवें
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 08 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बचपन की सैर कराती बेहतरीन कविता ।
Amrita Tanmay ने कहा…
काश! सब हो पाता.... सुन्दर रचना।

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