" बचपन के खेल" कविता
खेल खेल
वो बचपन के खेल
वो बचपन की खुशियां
काश !वो बचपन के खेल वापस आ जाते।
काश !वो बचपन के खेल वापस आ जाते।
खेल खेल
वो छुपन-छुपाई का खेल
छुपकर आते,हाथ लगाते
मन खुशियों से भर जाते
काश !लुक्काछिपी का खेल वापस आ जाते।
छुपकर आते,हाथ लगाते
मन खुशियों से भर जाते
काश !लुक्काछिपी का खेल वापस आ जाते।
खेल- खेल
वो कंचे का खेल
निशाना सिखाता, प्रेम बढ़ाता
काश !वह कंचे का खेल वापस आ जाते।
खेल खेल
वह गिल्ली -डंडे का खेल
दौड़-धूप कर पसीना बहाते
काश !गिल्ली डंडे का खेल वापस आ जाते।
खेल खेल
वो चोर- सिपाही का खेल
दोस्त बनाते,समूह बढ़ातेकाश!
खेल-खेल
चोर-सिपाही का खेल वापस आ जाते।
अनुमान लगाना,नेतृत्व सिखाता
काश!चोर सिपाही का खेल वापस आ जाता है।
खेल-खेल
वो लंगडी़-टांग का खेल
नियंत्रण सिखाता,बचपन बढ़ाता
काश!लंगड़ी-टांग का खेल वापस आ जाते।
खेल-खेल
वो आंख-मिचौली का खेल
आत्म-शुद्धि,बल-बुद्धि,
भाईचारा बढ़ाता,जीवन को मजबुत बनाता
काश!आंख-मिचौली का खेल वापस आ जाते।
खेल-खेल
वो गुट्टे का खेल
हाथों की चंचलता,मन का प्रेम
काश!गुट्टे(गट्टा) का खेल वापस आ जाते।
शंकरलाल,
धीरदेसर(हनुमानगढ)
वरिष्ठ अध्यापक (हिन्दी)
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