"श्रावणी-समीर"

"श्रावणी-समीर"
   
तपती धरती की सांसो में,
मेघा ने नीर संचार किया।
मोर पपैया की आंखों में,
श्रावण स्वप्न साकार हुआ।
कृषक की प्यासी निगाहों में,
आशा का दीप साकार हुआ,
प्यासी कोयल की रागों में,
नई रागों का संचार हुआ।
मरुभूमि की प्यासी रेत में
ठंडी हवा का संचार हुआ
खाली तालाबों के पैदों में
ठंडे नीर का बहाव हुआ
गोपालक के सुखे खेतों में
हरी घास का उद्भव हुआ
उपवनों की क्यारी में
नए फूलों का उगाव हुआ
जेठ से झुलसे पेड़ों में
नए पत्तों का उगाव हुआ
सूखे कुऔं के पातालों में
नए जल का भरा हुआ
जंगल की जलती मृगतृष्णा में
श्रावण- लहरी का संचार हुआ
जन की प्यासी आशा में
शिव ने सपना साकार किया
जग के प्यासे सपनों में
इंद्र ने मेघा नीर भरा
गांवों की गहरी निराशा में
इंद्र ने आशा संचार किया 
जन जन की प्यासी आखों में
श्रावण लहरी का उपकार हुआ।
         
         शंकर नाथ धीरदेसर


  



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