" गरीब किसान का दर्द"


घर में ..................
एक गाय थी .........
उसने चारे के अभाव में लात मार दी
भटकता रहा उस चारे की खोज में
न चारा ला सका और न ही दुधधारा बहा सका

घर में .....................
एक बूढ़ी मां थी.........
आंखों से अंधी,बीमारी से जकड़ी हुई
भटकता रहा मां की दवाई की खोज में
न दवा ला सका और न ही मां को बचा सका

घर में...............
एक बकरी और उसके दो सुंदर बच्चे थे..
सोचा बच्चे बड़े होंगे और बकरी दुध देगी
न हीं बकरी ने दूध दिया न हीं बच्चे बड़े हुए

घर में......................
एक बच्चा था...........
सोचा था बच्चे को पढ़ाउगां,शिक्षित बनाउगां
मैं न बच्चे को पढा सका और न ही शिक्षित बना सका

अंत में वह घर ही.......
उस घर मे न मैं रह सका न ही परिवार
गरीबी के कारण सबकुछ चला गया
न जिदगीं बची न जमीन बचा सका..
.......गरीब किसान........

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

" बचपन के खेल" कविता

जो बीत गया सो बीत गया

शिक्षक दिवस