शीत-ऋतु

शीत-ऋतु थी,कंपकंपता प्रदेश
पल-पल कंम्पित प्रकृति-परिवेश
बर्फिली हवा की रफ्तार
चुबती सकल संसार
बढता धुंध का गुब्बार
चकित जनसमुह बार-बार
करता जन-जन हाहाकार
था हिमालय भी कुपित
बढता बर्फ का विस्तार
अपने शीत-पिड़ित-दृग फार
लपेटे लाव-लश्कर किरणे सहित
चकित दिनकर भी दक्षिण मे प्रस्थान
शिशिरांशु की चन्द्रिका शीतल
शीतज्वर सा शीतकर को
चहुदिशी शीतलता प्रखर
शीततरंग है भूतल पर
मणिक सरिस बुन्दे ओस की
विस्तारित सकल भूतल पर
स्वर्णिक बुन्दे है फसल रबी पर
शीत से पिड़ित जन है,
कुंठित मन-बदन 
अलाव से तपता तन है,
निगौड़ी शीत 
मनुज पर रख प्रीत....🖋🖋











Shankar nath








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