मैं शब्द हूं(कविता)


मैं शब्द हूं
तोड़ो-मरोड़ो पर
सार्थक हूं तो अर्थ देता हूं
निरर्थक हूं तो अनर्थ कर देता हूं
मेरा वजूद पूरी दुनिया है
पूरी दुनिया मुझ में लय है
मैं पूरी दुनिया में लय हूं
मैं बच्चा हूं
ना समझ
और मासूम हूं
मुझे भावों में पिरोलो
और एहसासों में संजोलो
तो जीवन आसान बना देता हूं
मेरे से ही तो बच्चे-बूढ़े की पहचान होती है
मैं ही हूं जिससे
समझ-नासमझ का श्रृंगार मिलता है
मुझको संभल कर काम में लेना वरना
बना बनाया काम बिगाड़ देता हूं
मेरे(शब्दों) से ही तो
खुशी और गम का एहसास होता है
मेरे(शब्दों) में ही तो
सूरत और बे-सूरत का श्रृंगार होता है


   

   Shankar nath


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