जाग मुसाफिर जाग(कविता)

🙇🙇🙇🙇
जाग मुसाफिर जाग
तेरे जगने की है आस
क्यों है तू इतना निराश
दिनों-दिन होता हताश
जाग मुसाफिर जाग

क्या तुमने पाया जग में
क्या तुमने खोया मग मे
क्यों है इतना उदास
जाग मुसाफिर जाग

क्या विपत्ति है तुम पर आई
क्यों इतना घबराया है भाई
क्या समस्या है तुझ पर छाई
जाग मुसाफिर जाग

जग में आया
कुछ नहीं पाया
आलस में है घर बनाया
फिर कहता है- कुछ नहीं पाया
जाग मुसाफिर जाग

🏃🏃🏃🏃🏃
जब-जब है तू दौड़ा
संयम का साथ है छोड़ा
आत्मविश्वास को नही जोडा़
इसलिए जीवन का रूख है मोड़ा
जाग मुसाफिर जाग

उम्मीद न टूटे,
हौसला न छूटे
आत्मविश्वास के सहारे
जीवन का रूप संवारे
जाग मुसाफिर जाग

बैसाखियां छोड़ बहाने की
आदतें छोड़ पुराने जमाने की
आत्मबल से चलना सीख
जाग मुसाफिर जाग

दर्द बहुत है जमाने में
हौसला रख ले तू कमाने में
कोई हारा है कोई बेसहारा है
पर निखरा वही जो चलनवारा है
जाग मुसाफिर जाग

देख हौसला चिंटी का
दीवार पर चढ़ती है
हजारों बार गिरती है
कोशिश बेकार नहीं जाती है
आखिर सफलता की सीढ़ी
पर चढ़ जाती है
जाग मुसाफिर जाग

अंगारों पर चलना होगा
तूफानों से टकराना होगा
संघर्षो में तपना होगा
तभी सपना पूरा होगा
जाग मुसाफिर जाग

इतिहास वही जन रचता है
जो संघर्षों की भट्टी में तपता है
मेहनत का अलाव जलाता है
सफलता का लावा पाता है
दुनिया में परचम लहराता है
जाग मुसाफिर जाग


             शंकर लाल धीरदेसर हनुमानगढ़ .                      वरिष्ठ अध्यापक (हिंदी )
          राजकीय बालिका माध्यमि विद्यालय.                          अलीपुरा (अजमेर)

टिप्पणियाँ

Dinesh bhargav ने कहा…
शानदार 👌
DMM MUSIC ने कहा…
आशा से भरपूर

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