फाल्गुनी-आभा(कविता)


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अंग के रंग लगाई के
मन मे बहुत उमंग
अंग अंग में रंग लगत है
हृदय बही तरंग।
हर्षित-जनों की देख खुशी
वसुधा रंगी बहुरंग
चंग की मृदंग बजत
सतरंगी स्वर उठत
रगरसिया नचत
पग पायल बजत
रसिका ठुमक-ठुमक चलत
हियरा संग-संग नचत
होली की हुड़दंग मे
अपने के संग मे
रंग गुलाल अबीर के संग मे
संतरंगी आभा फागुन की



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