मरुवाणी(कविता)

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ऊंचे रेत के टीलों पर
पेड़ नहीं लगते
पौधे नहीं उगते
न ही घास लहलहाती है।
उठते हैं तो सिर्फ धूल के गुबार।
जो आसमान में उठते हैं
उसको बदरंग कर देते हैं और
चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छा जाता है।
यह दृश्य हैं जेठ के महीने का।
जिसमें सब प्राणी त्राहिमाम करते हैं।
उसके बाद.........
⛈⛈⛈⛈⛈
जब आती है वर्षा ऋतु तो
चारों तरफ घनघोर घटाएं छा जाती है
आसमान मे मानो बाढ आ गई हो
कड़कती है बिजली और
बरसते है बादल तो मरु मे महकार आ जाती है
खुश होते हैं हलदर और उसके बैल
खुश होती है मरूधरा तो
खुशबू मिट्टी की चारों तरफ फैल जाती है
लहलाती है फसलें तो ऐसा लगता है मानो
मरूवण ने हरियाली चुनर ओढ ली हो
और मरुधर में बहार आ गई हो
खुश होते पशु-पक्षी तो मरू मे
जीवन की रसधार आ जाती है




टिप्पणियाँ

hamalzais ने कहा…
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