मैं समय हूं।(कविता)

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मैं समय हूं
मैं निरंतर चलता हूं
कभी रुकता नहीं
कभी झुकता नही
कभी थकता नहीं.....
एक ही गति है मेरी
कभी ठहरा सा लगता हूं
तो कभी भागता प्रतीक होता हूं।
कभी सुख के साथ
तो कभी दुख के साथ
कभी हंसाता हूं
तो कभी रुलाता हूं
मै ही तुझे जगाता हूं
मैं ही तो तुझे सुलाता हूं
मेरी कीमत मैं नहीं जानता
जानने वाला भी तू ही है
कभी तू मुझे भगाता है
तो कभी मैं तुझे भगाता हूं।
कभी मोहमाया के जाल में फंसाता हूं।
न तो कोई मेरी गति समझ पाया
और नहीं मेरा कोई कर्म
मैं देखता हूं कि इस संसार में
मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है
जो इस सांसारिक मोह माया के जाल में
फंस जाता है
और मछली की तरह छटपटाता है।
यह उनके बुरे कर्मों का ही प्रतिफल है।
यह अभिशाप ही उनका परिणाम है
हे मानव प्राणी....
अभी भी मैं यही रुका हूं
तू मुझे समझ
तू मेरे साथ चल
तेरा कल्याण होगा।
    शंकर नाथ धीरदेसर
      वरिष्ठ अध्यापक


टिप्पणियाँ

DMM MUSIC ने कहा…
लाजवाब भाई साहब

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