बादळी (कविता)


⛈☁⛈⛈☁
हवा में लहराती वो 

बिना पंख के भी उड़ जाती वो 

यायावरी से मदमाती वो 

जीवन में सतरंगी खेल दिखाती वो 

सावन में इसका रूप निराला 

लगती वो रूपवती बाला 

कहीं प्यार से तो 

कहीं क्रोध में बरसती वो  

श्रावण में नृत्यांगना सी वो

कृषक के मनभाती वो 

कभी पहाड़ पर तो कभी 

मरुस्थल में चली जाती वो 

जहां भी जाती सुंदर दृश्य दिखलाती वो 

श्रावण की प्यारी बादळी

कृषक की दुलारी बादळी

जन मन को हरषाती बादळी

☁☁☁☁☁☁


लेखक:- शंकर नाथ जाखड़,धीरदेसर 

टिप्पणियाँ

Dolt Loveable ने कहा…
बहुत ही सुंदर
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आपके साहित्य में पंत और निराला की प्रगाढ़ छवि है। बहुत अच्छे

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