बालीनाथ जी चालिसा
गुरु चरणों में सीस धरु,करु प्रथम प्रणाम
प्रथम निमण गुरूदेव को,बार बार प्रणाम आशिष देवो गुरूदेव मोहि,सेवा करुं निष्काम
रोम रोम में रम रहा, रुप तिहारै नाथ
दूर करो अवगुण मेरे, पकड़ो मेरा हाथ
.................................................
बाली नाथ ज्ञान भंडारा,
निशि दिवस जपु नाम तुम्हारा,
तुम हो जपी सिद्ध अविनाशी,
तुम हो 'धिराणै' रा वासी
तुमरा नाम जपे नर नारी,
तुम हो सब भक्तन हितकारी,
तुम हो शिव शंकर के दासा,
थार लोक तुम्हारा वासा,
सर्व लोक तुमरा जस गावें,
ॠषि-मुनि तब नाम ध्यावें,
कन्धे पर मृगशाला विराजे,
हाथ में सुन्दर चिमटा साजे
सूरज के सम तेज तुम्हारा,
मन मन्दिर में करे उजारा,
बाल रुप धरी गऊ चरावे,
धुणे की आप भबूत रमावें,
अमर कथा सुनने को रसिया,
करम तिहारे मोहि मन बसिया,
धीराणे आप आसन लगाये,
ग्वालो को जब पास बुलाये
सात सिद्धी नव-निधि के दाता
जो निमण करे सब सुख पाता
ऐसा चमत्कार आपने दिखलाया,
सब जन का तब रोग भगाया,
रिद्धी-सिद्धी नवनिधि के दाता,
तीनो लोक के भाग्य विधाता,
जो नर तुमरा नाम ध्यावें,
जन्म-जन्म के दुख विसरावे,
अन्तकाल जो सिमरण करहि,
सो नर मुक्ति भाव से तरहि,
संकट कटे मिटे सब रोगा,
बाली नाथ जपे जो लोगा,
भैरव नाशक शिव भक्त कहाया,
बाली नाथ जब नाम बताया
दूधाधारी सिर जटा रमाये,
अंग विभूति का बटना लाये,
अद्भुत तेज प्रताप तुम्हारा,
घट-घट के तुम जानन हारा,
बाल रुप धरि भक्ती पाएे,
निज भक्तन के पाप मिटाये,
गोरख नाथ सिद़ध जटाधारी,
तुम संग करी गोष्ठी भारी,
भैरव को तुम मार भगावे
रामदेव के दुख विसरावे
घट घट के तुम अंतर्यामी,
भले बुरे की पीड़ा पिछानी,
सूक्ष्म रूप धरि जब दिखावा,
खेजड़ी ने जब दर्शण पाया
दर पे जोत जगे दिन राता,
तुम रक्षक भय कोऊं से आता,
भक्त जन जब नाम पुकारा,
तब ही उनका दुख निवारा,
तीन लोक महिमा तव गाई,
अकथ अनादि भेद नहीं पाई,
करो कृपा सबके घट वासी,
तुमरा पाठ करे जो कोई,
बन्धन छूट महा सुख होई,
त्राहि-त्राहि में नाथ पुकारुं,
हर अवसर मोहे पार उतारो,
लै त्रिशूल भैरव को मारो,
भक्त जनो के हिरदे ठारो,
मात पिता बन्धु और भाई,
विपत काल बाबा है सहाई
बाबाजी एक आस तुम्हारी,
आन हरो अब संकट भारी,
पुत्रहीन इच्छा करे कोई,
निश्चय नाथ प्रसाद ते होई,
बाली नाथ की गुफा है न्यारी,
रोट चढ़ावे सब नर नारी,
चौवदस व्रत करे हमेशा,
घर में रहे न कोई कलेशा,
करुं वन्दना सीस निवाये,
नाथ जी रहना सदा सहाये,
'नाथ'शंकर करे गुणगान तिहारा,
सब को भव सागर से पार उतारा।
किजै नाथ सदा हरी चेरा
गांव धीराणै तुमरे डेरा
शंकर नाथ (वरिष्ठ अध्यापक हिंदी)
गांव-धीरदेसर,तहसील-रावतसर,जिला- हनुमानगढ़
shankarlalnath.blogspot.com
टिप्पणियाँ