श्रावणी-बेला
मेघा आए दूर से
आकाशा मंडराय
रिमझिम रिमझिम बरसे मेघ
तृप्त धरा हरसाय
कृषक बोए खेत को
हीरा मोती प्रकटाए
बदरा बरसे खेत में
हरियाली बढ़ जाए
झूम उठे चिंतित कृषक भी जब
श्रावणी बूंद गिर जाए
चमक उठे हर चेहरा भी जब
श्रावणी घटा चहु दिसि छाए
बूंद पड़े जब बगिया में
हर कलियां हरषाय
पीक-शिखी के मुग्ध मौन मे
श्रावणी मधु बस जाए
चहुदिशी नृत्य हरषित शिखी का
सतरंगी नृत्य दिखाय
श्रावण है श्रृंगार धरा का
कली-कली खिल जाए
मेघा बरसे जोर से जब
धरा मंद-मंद मुस्काए
अमृत बूंद के मिश्री घोल से
वातावरण रसीला हो जाए
शंकर नाथ (व.अध्यापक,हिंदी)
टिप्पणियाँ