सावन की बादळी

Savan poem

श्रावण श्रंगी बादळी 

तन मन को हरषाय 

चहु दिसि मन मेघ-सा 

बरसण को अधिकाय 

अभिलाषा मनोयोग सी 

वर्षा जल में तर जाए 

श्रावणी समीर मोहनी

प्रेम रंग चढ जाए

नवोढा का चित चीरकर 

विरह की आग लगाए 

श्रावणी श्रंगी बादली 

उनके मन को न भाय 

खेती कृषक भायली 

बाट लगाय बुलाए 

हरी-भरी दुल्हनी धरा 

सबके मन को लुभाए

सतरंगी समा धरा पर 

मोहनी दृश्य दिखाएं

श्रावण श्रृंगी बादळी 

तन मन को हरषाय


   Shankar nath


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