जैसी करनी-वैसी भरणी

सुल्तानपुर मे वर्षो नौकरी करने के बाद बाबूजी राजकीय सेवा से सेवानिवृत हुए और पति-पत्नी दोनो अपने जीवन की शेष बची जिंदगी खुशी-खुशी से काट रहे थे की एक दिन बाबूजी के जीवन मे बहुत बडा़ वज्रपात हो गया और बाबूजी की पत्नी का देहांत हो गया।बाबूजी बहुत दुखी हुए।

पत्नी के अंतिम संस्कार के बाद पति पुरी तरह टूट्ट चुका था और तेरहवीं के बाद रिटायर्ड बाबू जी(शिक्षा विभाग) गाँव छोड़कर दिल्ली में अपने पुत्र अमित के बड़े से मकान में आये हुए हैं। अमित बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है। यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु अम्मा ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे। यहीं ठीक है। सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे। ठीक है न!' 

बाबूजी ने कभी भी अम्मा जी की बात को नकारा नही केवल अम्मा जी की बात रखने के लिए...

बस बाबूजी की इच्छा मर जाती। पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी इसलिए बनवारी(बाबूजी) दिल्ली आ ही गए हैं।

अमित एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में चीफ इंजीनियर है। उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है।

घर में घुसते ही बनवारी ठिठक कर रुक गए। गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके। दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर अमित बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये।"

- "बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी।"

- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"

सहमें हुए कदमों में चलते हुए बनवारी जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी - अरे रे! मर गया रे!

उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे बनवारी चिहुँक कर चीख पड़े थे।

चाय पीने के बाद अमित ने बनवारी से कहा - "बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।"

- "जरूर बेटा, चलो।"

- "बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।"

- "तो बच्चे क्या अपने माँ-बाप के साथ नहीं रहते?"

- बाबूजी, यह शहर है और शहरों में लखनऊ है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय-समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।"

थोड़ा ठहर कर अमित में आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है।अगर कोई अतिथि आ जाय तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पेट्स के लिए है। कभी कोई कुत्ता,बिल्ली आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"

सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे अमित ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी-फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्रित कर दी जाती हैं और दीवाली- होली पर इसकी साफ-सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही यह एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"

बनवारी ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। बनवारी ने पलट कर अमित की तरफ देखा किन्तु वह नीचे जा चुका था। 

बनवारी चारपाई में बैठ कर सोचने लगे कि 'कैसा यह मकान है जहाँ भविष्य में पाले जाने वाले पशु के लिए कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ-बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं..... अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। अमित की माँ की सोच बिल्कुल सही थी। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'

अगली सुबह जब अमित बनवारी के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे। वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है। उधर बनवारी टिकिट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे। उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके 'अपने घर' की चाभी मौजूद थी। उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया। चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी।

"बाप बुढा हुआ तो बेसहारा हो गया

बेटा बाप का नही बहू का प्यारा हो गया"

समय बीतता गया और बनवारी का जीवन उसी के पुराने पुराने घर में बीता गया थोड़े समय बाद बनवारी जी की मृत्यु हो गई

समय बड़ा बलवान होता है समय के फेर में अमित भी जरा अवस्था की ओर चल पड़ा अमित ने बेटे राजू की भी शादी कर दी थी राजू एक बड़ी कंपनी में मैनेजर था गाजियाबाद की एक बड़ी कंपनी के पास में ही एक फ्लैट खरीद लिया और वहीं पर रहने लगा अमित बूढ़ा हो गया थोड़े समय बाद अमित की पत्नी की मृत्यु हो गई और अमित अपनी बची कुची जिंदगी वही अपने घर में भी थाने लगा राजू के कहने पर वह गाजियाबाद आ गया उनके साथ भी जो बनवारी के साथ बिता वही हाल हुआ अमित को गाजियाबाद पहुंचने के बाद राजू ने पूरे प्लेट दिखाने के लिए बोला और छत पर चला गया वहां जाकर के एक कबाड़ के सामान को दिखाकर कहां आज के बाद यह आशियाना आपका रहेगा पापा जी तो उसी समय अमित को बनवारी के साथ किया गया वह वार याद आ गया और मन ही मन रोने लगा कहने लगा कि बूढ़े मां बाप के साथ जैसा आप करोगे वैसे ही आप की औलाद आपके साथ भी करेगी इसलिए इस कहानी से यही भाव निकलता है की बूढ़े मां बाप की सेवा सुरक्षा करनी चाहिए क्योंकि आप भी कभी बूढ़े होंगे


                        🙏🙏

टिप्पणियाँ

आज के समाज की सच्चाई पर चोट करती कहानी । बहुत ही यथार्थवादी विषय पर सटीक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
Rakesh ने कहा…
कटु यथार्थ

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