किसान के पसीने की चमक

फैली धरा में दूर तलक 

खेतों की सुनहली हरियाली  

लिपटी जिसमें रवि की किरणें 

स्वर्ण-शिखा-सी मंजिल जाली 

लहलाती सी,इठलाती सी 

नव-यौवन में मदमाती बाला-सी

सरसो की मंजूल-लाली

तिनकों के हरित पर्ण पर 

पीला सिंदूर सा झलक रहा

पीत वसुधा तल पर झुका हुआ 

नभ का नील निर्मल नीलांबर 

रोमांचित सी लगती वसुधा 

ओढ़ चुनरिया पीली जाली 

बीच खेत में खड़ा है कृषक 

सुखद चेहरा है खड़ा जो माली 

देख खेत की हरी हरियाली 

रंग-रंग के फूलों में रिलमिल 

हंस रही है कृषक की घरणी 

लहलाह रहे हैं खेत उनके दृगों 

प्रसन्नचित्त है सकल घरवाले 

हरियाली के तृण-तृण से 

घूम रहा है कृषक का तन-मन

खिलखिला रही है उसकी लाली

खुशहाली है घर द्वार में 

रंगीन संमा है सकल परिवार में


टिप्पणियाँ

Meena Bhardwaj ने कहा…
बहुत सुंदर सृजन ।
बेनामी ने कहा…
धन्यवाद जी
Amrita Tanmay ने कहा…
सुन्दर शिल्प एवं कृति।

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